Friday, October 17, 2014

किसी की शोना




उसमें वो सबकुछ था जो एक आइडियल बन्दे में होना चाहिए. पढ़ाकू, खिलाडी, समझदार साथ में बहुत शालीन और सभ्य. सरकारी स्कूल के ढेरों बच्चे उसके जैसा बनना चाहते थे. क़स्बे के अकेले प्राइवेट स्कूल में उसका नाम मास्टर बड़ी इज़्ज़त से लेते थे. अभी अभी वो फुटबॉल में अंडर-19  में खेल के आया था और क़स्बे के लिए ये बड़ी बात थी. वो अकेला ही था जो ऐसे क़स्बे से था जहां ग्राउंड के नाम पे एक अकेला मैदान था जिसमें सारे खेल ही एकसाथ खेले जाते थे. फिर भी उसने फुटबॉल खेला, सीखा और सेलेक्ट हुआ....अपनी दम पे. मैं नौ साल का हूँ और उसके जैसा बनना चाहता हूँ.

मेरी बड़ी बहिन बला सी खूबसूरत है. उतनी ही जितनी की किसी टीवी के विज्ञापन में कोई लड़की दिखाई जाती है. बचपन में मैं समझता था उसने 'फेयर एंड लवली' लगाई है इसलिए गोरी हो गयी...अब जब थोड़ा बड़ा हुआ तो माँ कहती है की वो पैदा ही इतनी सुन्दर हुई थी. माँ ये भी कहती है की जब वो सौलह-सत्रह की उम्र की थी तो इतनी ही खूबसूरत थी. मैं नहीं मानता, क्यूंकि अब तो माँ के चेहरे पे दाग हैं...और कुछ पीठ पे भी गहरे नीले से निशान हैं. मैंने कई बार पूछा कैसे पड़े तो माँ टाल देती है.

मेरी बहन शानू दी मिस इंडिया बनना चाहती है उसने एक दफ़े मेरे से कहा था. मुझे ज्यादा पता नहीं था तो बस मैंने उससे 'ठीक है' कहा. धीमे से. बाद में उसी तरह हमारे प्रधानमंत्री ने भी 'ठीक है' कहा था. मैंने टीवी पे देखा था. शानू दी पढ़ती भी थी, प्राइवेट स्कूल में लेकिन अक्सर सरकारी स्कूल जाती रहती थी, कभी कभी मैदान में. घंटों वहां बैठी रहती थी. कभी कभी मैं भी जाता था. कभी कभी मेरा 'हीरो' फुटबॉलर भी वहाँ आ के बैठ जाता था. फिर वो दोनों बातें करते थे. मैं बस फुटबॉलर को देखता था. उसके जूते तो उसकी टी-शर्ट और उसकी फुटबॉल. लेकिन मुझे उनकी बातें समझ नहीं आती थीं. दी बड़ी जोर-जोर से उसकी बातें सुन हंसती थी. वो उसे 'शोना' कहता था.

एक दिन मैंने दी से पूछा कि तुम्हें 'शोना' क्यों कहता है. दी ने कहा 'ऐसे ही.'
मैंने पूछा कि 'मैं भी आपको शोना दी कहूँ?' 'नहीं...' दी ने कहा और बताया कि 'शोना' कहना सिर्फ हीरो का हक़ है किसी और का नहीं.
मैं हक़ की नाहक दुनिया से बाक़िफ़ नहीं था इसलिए मुझे ज्यादा समझ नहीं आया. मैं शानू दी के साथ बहुत खेलता था. लेकिन मेरा फुटबॉल खेलने का ज्यादा मन था.एक दिन हम मैदान पे गए. मेरा हीरो फिर दी के पास आ के बैठा. उन दोनों ने बातें की. मैं भी आपकी फुटबॉल से खेल लूँ?' मैंने पूछ लिया. उसने मेरी तरफ देखा और हाँ कह दिया. शानू दी मुस्कुरा दी. उस दिन से हम तीनों ही साथ रहते. मैं शानू दी और हीरो. मैं उसे 'हीरो' ही कहता क्यूंकि दी भी उसे यही कहती थी.

मैंने एक दिन दी से कहा कि वो बड़ी हो रही है, ऐसा मैंने पापा मम्मी को बात करते सुना था. उसने बस हाँ कहा. पापा को उसकी शादी की फ़िक्र है मैंने उसे ये भी बताया. वो चुप रही. मैंने कहा मुझे हीरो पसंद है तुम उससे शादी कर लेना. दी मुस्कुरा दी, मेरे सर पे हाथ फेरा और कहा कि अब रात बहुत हो गयी है हमें सोना चाहिए. हम सो गए.

मैं सुबह उठा, बगल में शानू नहीं थी. घर में हंगामा मचा हुआ था. पिता माँ से बोल रहे थे 'सब तेरी वजह से हुआ है.' उनके हाथ में डंडा था जो माँ की उघड़ी पीठ पे निशान बना रहा था. तब मुझे एहसास हुआ कि माँ की पीठ पे वो नीले निशान कैसे पड़े हैं. घर में दूर के, पास के, आस-पास के सारे चाचा जमा थे. सब माँ को पिटते देख रहे थे.

शानू भाग गयी थी. भागना बड़ा अजीब शब्द है. पी टी उषा भागे देश खुश, हमारी शानू भागे तो दुनिया दुखी. शानू मेरे फुटबॉलर हीरो के साथ भागी थी. मेरी माँ का मार के दर्द से तो कुछ शानू के लिए रो रो के बुरा हाल था. सारे चाचा शानू को और हीरो को ढूंढने लग गए थे. पुलिस भी आई, खाकी पहने. एक संतरे से नारंगी कपडे पहने आदमी भी आया. सब उसे नेताजी, नेताजी कह रहे थे. चार दिन बाद शानू घर लौटी. वो लगातार रो रही थी. मेरा बाप लगातार उसे पीट रहा था. मेरी माँ ने शानू को बचाने की कोशिश की और फिर उसकी पीठ पे दो-चार हरे-नीले निशान बना दिए गए. मेरे बाप का मन भर गया या शायद उसका हाथ दुखने लगा था तो वो बाहर चला गया. मैं शानू दी के पास गया. उसने मुझे गले से लगा लिया. वो लगातार रोये जा रही थी. मैं उसके साथ रोने लगा. माँ हमें छाती से चिपका रोती रही.

शानू दी को अलग कमरे में बंद कर दिया गया. मैं अकेला सोया. मेरा बाप शानू दी के कमरे की कुण्डी सोने जाने से पहले लगा देता. एक हफ्ते में शानू गोरी से काली पड़ गयी थी. अब वो मुझे टीवी के विज्ञापन की लड़की के जैसे नहीं लगती थी. उसके आँखों के गड्ढे काले पड़ गए थे. घर में अब भी तरह तरह के लोग आते. तरह तरह की बातें करते, जो मुझे समझ नहीं आती.

एक दिन शानू ने मुझे सौ रूपये दिए, परचा लिख कुछ लाने को कहा. मैं चुपचाप गया और उसने जो कहा था ले आया. उसने मुझे पुचकारा. कहा 'अच्छे से पढ़ना, माँ का ख्याल रखना.' मैंने हाँ में बस जवाब दिया.

ठीक दो दिन बाद  मैं सो कर उठा. बाहर बहुत शोर था. शानू माँ की गोद में पड़ी थी. उसके मुंह से ढेर सारा खून निकल रहा था. मैं उसे दी, शानू दी कह जगाने लगा लेकिन वो न उठने वाली थी न उठी. उसके कमरे में बाद में एक कागज़ मिला. उसे मैंने ढूंढा था. अपने बाप को देने से पहले मैंने उसे पढ़ा. उसमें लिखा था-

' माँ
मैं तुम्हारी तरह नहीं जीना चाहती. घुटके, पिट-पिट के. बचपन से तुम्हें पिटते देखा है. पापा मेरी शादी भी वैसे ही कहीं करा देंगे. मैं भी पिटूँगी, घुटूंगी. मुझे ऐसे नहीं जीना. शाहिद बहुत अच्छा लड़का था माँ. बहुत अच्छा फुटबॉल खेलता था एक दिन ज़रूर नेशनल टीम में होता. वो मुझे भगा के नहीं ले गया था. मैंने उससे कहा था, मेरा दम घुटता था इस घर में.

माँ, ये कोई लव जिहाद नहीं था. इसका तो न मुझे मतलब पता था न उसे. उसका तो बाप भी नहीं है. एक बूढी माँ है. उस औरत ने 3  दिन मेरा बड़ा ख़याल रखा. वो बहुत अच्छी है. पता नहीं उसका क्या हाल होगा अभी.
मैं अठारह की हूँ, वालिग हूँ. लेकिन मेरे कोई अधिकार नहीं हैं. मुझे जानना भी नहीं हैं कि क्यों नहीं हैं. मेरे सामने इन लोगों ने शाहिद को मार डाला. अब मैं भी मरना चाहती हूँ. बचपन में तुम कहती थी कि तुम मुझे ठन्डे पानी से नहलाती थी जिससे मैं मर जाऊं. क्यूंकि लड़कियों के साथ ऐसे ही किया जाता है. मैं बच गयी वो मेरी बदकिस्मती थी. अब मैं तुम्हारे जैसा नहीं बनना चाहती. मुझे नहीं करनी शादी कहीं, न लड़कियां जननी हैं न उन्हें ठन्डे पानी से नहलाना है न तुम्हारे जैसे मार खा खा पीठ नीली करनी है.
मुन्ने से कहना खूब पढ़े और फुटबॉलर बने. शाहिद सा अच्छा बने.

किसी की,
शोना'

मैंने वो कागज़ अपने बाप को दिया. उसने मुझे वहां से जाने को कहा. मैं दरवाजे पे आ गया. बाहर दीवारों कागज़ चिपके हुए. उन पीले कागज़ों पे लाल रंग से लिखा था- 'अपनी बेटियों को लव जिहाद से बचाएं.'
ऐसे ही लाल रंग के धब्बे तो उस कागज़ पे भी थे जो मैंने अभी अभी बाप को दिया था. मैंने देखा मेरी छाती पे जहाँ दिल होता है, कुछ गहरे लाल-लाल, नीले- काले धब्बे उभर आये हैं.

मैंने देखा एक बुढ़िया 'शाहिद, शाहिद' चिल्लाती पीले पन्ने फाड़ रही है. लोग उसे पागल कह दूर भगा रहे हैं.

[ चित्र इंडियन एक्सप्रेस से. चित्र क्या है? बस वास्ता रखता है कहानी से. ]

1 comment:

Unknown said...

ultimate bhaiya....you are gr8