Monday, October 27, 2014

नित्या मत बनो




उसका आना मुझे अजीब लगता था, शायद मुझे पसंद नहीं था. हर बार पुणे आकर मुझसे मिलना! मैं इसका कारण भी जानना चाहता था.

आज भी अपना काम ढंग से नहीं कर पाया. बॉस से थोड़ी कहा-सुनी हुई. आईटी इंडस्ट्री में यही एक प्रॉब्लम है, टाइम लाइन बहुत टाइट रहती है. हर हाल में वक़्त पे काम कर के देना है.

ठीक सात बजे में कॉफ़ी कैफ़े में था. मुझे पता था वो इंतज़ार करती मिलेगी.

'क्या काम है?' मैंने तल्ख़ी से से कहा.
'कुछ नहीं, यहां आई थी तो सोचा मिल लूँ.' उसने दो कॉफ़ी आर्डर करते हुए कहा. मैंने उसकी ओर गौर से देखा. वो गहरी हरी ड्रेस में बेहद खूबसूरत लग रही थी. उसके चेहरे का लावण्य (ग्लो) देख कोई भी कह सकता था कि उसकी अभी अभी शादी हुई है.
'तो आज फिर से ऑफिस से सीधे यहां?' उसने बाजुओं में पड़ी ढेर साडी चूड़ियाँ खनकाते हुए कहा.
'तुम यहां क्यों आये हो?' मैंने उसका प्रश्न इग्नोर करते हुए सीधे पूछा.
'लुक, तुम्हें पता है, मुझे पता है, फिर क्यों पूछ रहे हो?'
'देखो जो है वो ठीक नहीं है नित्या. कभी न कभी तो निशांत को पता चलेगा ही. तब क्या होगा?'
'तो क्या होगा? वो मुझे तलाक़ दे देगा और मैं सुबोध से शादी कर लूंगी. वो तो वैसे भी तैयार है ही. और हाँ इस बार मम्मी कुछ नहीं बोलेगी. तलाक़ निशांत देगा तो मैं बेचारी जो कहलाउंगी.'

नित्या की शादी निशांत से हुई थी. तीन महीने पहले. नित्या को सुबोध पसंद था लेकिन उसकी माँ नहीं चाहती थी कि वो एक स्ट्रगलर से शादी करे. सुबोध अब भी अपना बिजिनेस जमा रहा था. निशांत आईआईएम से पढ़ा है, मुंबई में एक बड़े बैंक में कार्यरत है. मोटी तनख्वाह, बड़ा घर. बस नित्या की माँ को लड़के में यही चाहिए था. उन्होंने नित्या की शादी निशांत से कर दी. सुबोध देखता रह गया, नित्या मना करते रह गई.

हमारी कॉफ़ी आ चुकी थी. 'क्या बहाना कर के पुणे आती हो?' मैंने पूछा.
'तुम, कभी रीना कभी कुछ और बहाना. मुझे पता है मैं गलत करती हूँ लेकिन सुबोध मेरे बिना जी नहीं पायेगा, न मैं उसके बिना. न चाहते हुए भी आ जाती हूँ. वैसे भी हमारी गलती नहीं थी.'
'वो तो निशांत की भी नहीं है कि उसकी बीवी किसी और से मिले.'
'जज मत बनो विशाल. मैं तुमसे इसलिए मिल लेती हूँ कि मन हल्का हो जाता है. तुम ही तो हो जो समझते हो हमें. मुझे और सुबोध को.'
मैं शांत रह गया. कुछ मिनट बस हम कॉफ़ी पीते रहे.

'तुमसे कुछ कहना है.' उसने शुरुआत की. 'रीना का पति जर्मनी गया है शोर्ट टर्म के लिए. अकेली है वो.'
'तो मैं क्या करूँ?'
वो तुमसे अब भी प्यार करती है. तुम भी.....'
'मैं नहीं करता.'
आँखे मत चुराओ साफ़ लिखा है.'
'तो ये बताने आई थी तुम?'
'नहीं, ये बताने कि इस बार मैं रीना के घर ही रुकी हूँ. कल सटरडे है, शाम पार्टी रखी है. अपनी वाली पार्टी. हम पार्टी करेंगे,बिलकुल पहले की तरह.... मुझे पता है, फ़ोन करने से तुम आने से रहे इसलिए मिलने चली आई. हाँ आना. कम से कम पुराने दिनों के खातिर.'

पुराने दिन....रीना और नित्या फ्लैटमेट थे. 2BHK फ्लैट. हम सब शनिवार को मिलते थे, उनके फ्लैट में. मैं, रीना, नित्या और सुबोध. सबके सब छोटे शहरों से आये थे. रीना और में स्कूल से प्यार में थे, सुबोध और नित्या कॉलेज से. हर शनिवार को हम बैठ के पीते थे, गप्पे करते थे, सोते थे. नित्या की शादी जबरदस्ती करा दी गई. छोटा शहर, इश्क़ गुनाह, ढेरों बातें और बस. मुझे पता था मेरी नियति में भी यही कुछ लिखा है. खैर हम भी कब तक अपनी खैर मनाते. जात-पात के तमाम हवाले देकर रीना की शादी भी करा दी गई. मैंने बहुत मेहनत की रोकने की, सब बेकार. मैं बस अपने इश्क़ को ढलते देख सकता था, बचा नहीं सकता था. मैं उसके माँ-बाप के खिलाफ जाकर शादी नहीं करना चाहता था, और उसके माँ-बाप जाति के बाहर उसकी शादी नहीं करना चाहते थे. रीना प्रैक्टिकल थी, पहले उसने मुझे चार गलियां दी, दो बार उसूलों की पोटली कहा और एक झटके में  मेरे से ढाई गुना कमाने वाले अमित से शादी कर ली.
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मैं अपने रूम आ गया. रीना के घर आना नहीं चाहता था. उसकी शादी के बाद इन दो महीनों में मिला भी नहीं था, फ़ोन भी नहीं किया था. उसका घर भी नहीं पता था. थकान और कशमकश में कब नींद आ गई पता भी नहीं चला.
सुबह मोबाइल में दो मैसेज पड़े थे. नित्या ने रीना के घर का पता भेजा था. दूसरा मैसेज सुबोध का था- 'प्लीज, मेरे खातिर आ जा.'

शाम को सुबोध का फ़ोन आया. उसे पिक करना था. मैंने कार उठाई, सुबोध को लिया और रीना के फ्लैट पे पहुँच गया. वहां दोनों ने पहले से सारे इंतज़ाम कर रखे थे.मैंने रीना का फ्लैट देखा. उसने ख़ूबसूरती से उसे सजाया था. दीवारों पे मेरे द्वारा खींचे उसके खूबसूरत फोटो लगे हुए थे. एक-दो फोटो अमित के साथ थे, किसी हिल स्टेशन के. शायद हनीमून ट्रिप के थे.

हम पुराने माहौल में आ गए. रीना ने गिलास भरे, सुबोध ने अपने लिए सिगरेट सुलगाई और फिर वही पुरानी बातें. बीते दिन जैसे हमारी आँखों के सामने से फिर घाट रहे थे.लोनावला के सारे ट्रिप एक एक कर के याद किये.

'हम तेरे बैडरूम जा रहे हैं.' नित्या ने कहा. सुबोध और वो रीना के बैडरूम में चले गए. मैं उन्हें जाते घूर रहा था.
'ऐसे मत घूरो, ये पहली बार तो नहीं है उनके लिए.' रीना ने कहा.
'हम्म..' कह मैं वहीं लेट गया. शायद कुछ पीने का असर था और कुछ हफ्ते भर की थकान का.


मुझे अजीब सा लगा. मेरी आँख खुल गई. मेरे होंठो पे रीना के होंठ रखे हुए थे. 'ये क्या है?' मैंने उसे झटकते हुए कहा. मेरी दारू यकायक से उतर गई थी, मैं खड़ा हो गया.
'आई स्टिल लव यू विशाल.' वो मुझसे गले लगते बोली. 'फिर ये पहली बार तो नहीं है. शादी से पहले भी तो....'
मैंने उसे जोर से झिटका. वो अलग हो गई. 'शादीशुदा हो तुम. नित्या बनने की कोशिश मत करो. मैं सुबोध नहीं हूँ.' मैंने गुस्से से बोला और तेज़ी से बाहर निकल गया.

रीना फर्श पे गिरी हताश मुझे जाते देख रही थी. शायद वो बुदबुदाई... शायद उसने 'ब्लडी उसूलों की पोटली' कहा था.


[Pic: Unfaithful film में Diane Lane. ]

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