'तुम मेरी सबसे
प्यारी नज़्म हो.' कहानी
की शुरुआत यहाँ
से न हुई
होती अगर मुझे
उससे प्यार न
हुआ होता. वो
यानि दुनिया की
सबसे ज्यादा भाव
खाने वाली लड़की,
वो यानि सबसे
अच्छी हंसी हंसने
वाली लड़की. वो
यानि प्यार करने
वाली लड़की. प्यार
कई तरह के
होते हैं, जैसे
अच्छावाला प्यार, जिसमें लड़की-लड़की दोनों ही
चादरों तले अच्छे
प्यार का सुख
भोगते हैं. खुश
रहते हैं. लड़की
वाला प्यार, जिसमें
लड़की बस अपने
आंसू बहाती है
और लड़का सिर्फ
अपनी जेबें टटोलता
है. लड़के वाला
प्यार, जिसमें दस दिन
इश्क होता है
और ग्यारहवें दिन
किसी सस्ते होटल
के सीलन भरे
कमरे में लड़के
के कपडे पहिनते
ही प्यार का
अंत होता है.
लेकिन यकीनन ये
प्यार सच्चा था,
क्यूंकि इसमें न तो
जिस्म था, न भोग
की लालसा. हाँ,
हमने एक-दूसरे
को चूमा ज़रूर
था, लेकिन वो
भी इतनी अधिक
बार कि उँगलियों
की पोरों इन्हें
गिना नहीं जा
सकता.
वो मतलब दुनिया
की सबसे अजीब
लेकिन उतनी ही
सजीव लड़की. सजीव
इसलिए कि उसे
याद था की
उसके चचेरे भाई ने कब उसे 'उस'
तरह से छुआ
था. उसे याद
था कि कब
उसने दरवाजे कि
दरारों से अपने
माँ बाप को
बंद कमरे में 'कुछ'
करते देखा था.
सजीव इसलिए क्यूंकि
उसके अन्दर ये यादें धुंए कि तरह बैठ
गयी थी. कभी
न उड़ने वाले
धुंए की तरह, जो नसों में घुला होता है और बार-बार सपने में आ हमें डराता है.
मैं मतलब 'मैं' था.
मेरे बाप को
जग-सेवा का भूत सवार था. वो
अपने कस्बे ही में डॉक्टर हो
गये थे. लोग
कहते थे उनके
हाथ में जादू
है. वो हाथ
देखते दो गोलियां
लिखते और लोग
ठीक हो जाते
थे. वो मुझसे
बहुत प्यार करते
थे. हाँ, वो
चिल्ला-चिल्लाकर डांटते बहुत
थे. मरीज़ डर
जाते थे. मुझे
लगता था कि
मरीज़ बस उनके
चिल्लाने बस से
ठीक हो जाते
हैं. ये दवाइयां
तो बस भ्रम
है. लेकिन ऐसा
सिर्फ मुझे लगता
था, किसी और
को नहीं. हाँ,
वो मेरे गालों
को चूमते थे.
उनके पास रहता
तो मैं बड़ा
खुश रहता था,
लेकिन थोडा डरता
भी था. बाप
कितना भी प्यार
करे, बच्चे उससे
डरते ही हैं.
ये देश की
परम्परा है, मेरा
बाप अपने बाप
से डरता होगा
और उसके
बाप से वो.
खैर इस डरने
कि परंपरा को
मैं भी बखूबी
निभा रहा था.
एक दिन वो
बहुत रोई थी.
उसका बाप भी
बहुत रोया था,
उसकी माँ भी
बहुत रोई थी.
उसकी दीदी भाग
गयी थी. हाँ,
लड़के के साथ
ही भागी थी.
लड़की-लड़की भागें,
या लड़के-लड़के
भागें देश ने
इतनी तरक्की नहीं
की. लेकिन अगर
देश इतनी तरक्की
कर ले तो
भागने की ज़रूरत
ही क्यूँ पड़े!
मैंने सोचा उसका
पी.डब्लू.डी.
में इंजिनियर बाप
ज्यादा रो ले
तो शायद उसके
अन्दर का सीमेंट
पिघल जाये, लेकिन
शायद उसका बाप
इतना भी नहीं
रोया था. खैर
मैंने उसे ढंढस
बंधाया और धीरे
से कहा कि
'सब ठीक हो
जायेगा.' वो मेरे
से चिपक गयी
और उस दिन
हमने एक-दूसरे
को पहली बार
चूमा. आप इसे
कमजोर पल का
नाम दे सकते
हैं. वो मेरे
से चिपकी रही,
उतने ही वक़्त
जितनी देर में
करन जौहर की 'कल हो
न हो' फिल्म पूरी हो
जाती है. फिर
शाम ज्यादा गहरी
हो गयी और
मैं धीरे से
अपने घर चला
गया, वो धीरे
से अपने घर
चली गयी.
उस दिन मुझे
माँ ने डांटा.
कहा 'रात को
देर से घर
नहीं आते.' मेरी
माँ दुनिया की
सबसे प्यारी माँ
थी. वो मुझे
मारती नहीं थी.
जब तक मैं
स्कूल में उसके
प्रश्नों का गलत
जवाब नहीं देता
था. वो मेरे
ही स्कूल में
पढ़ाती थी. उसने
आधी संस्कृत पढ़ाते-पढ़ाते सीखी थी.
हाँ उसे आधी
पहले से आती
थी. लेकिन उसे
इतिहास का बहुत
अच्छा ज्ञान था.
इतना कि सन
सत्तावन की क्रांति
के बारे में रानी लक्ष्मीबाई को भी
नहीं पता होगा.
(वैसे लक्ष्मीबाई ने पूरी लड़ाई देखी
ही कहाँ थी.)
वो कभी रोती
नहीं थी, जब तक कि मेरा
बाप उसपे हाथ
नहीं उठाता था.
जब मेरा बाप
ऐसा करता था
मैं उसे मार
डालना चाहता था.
फिर भी मैं
अपने बाप से
प्यार करता था.
उसकी दीदी जिस
लड़के के साथ
भागी थी, उसका
नाम रमेश था.
वो अच्छा लड़का
नहीं था, क्यूंकि
वो शराब पीता
था और शराब
पीने वाले हमारी
समाज में अच्छे
लोग नहीं होते.
वो मंगलवार को
चिकन भी खाता
था. शायद इसलिए
मंदिर के निठल्ले
पुजारी वो पसंद
नहीं था. हाँ,
उसने एक ही
लड़की से प्यार
किया था. उसने
सारी ज़िन्दगी में
एक ही लड़की
को चुम्बन लिया
था और सारी
दुनिया से अपना
इश्क बचाने एक
ही लड़की के
साथ भागा था.
लेकिन वो अच्छा
लड़का नहीं था क्यूंकि
वो उस निम्न
जाति का था
जो हमारे घर
के दरवाजे के
सामने से भी चप्पलें
उतार के निकलते
थे. उनके मंदिर
जाने से भगवान्
को उतना ही
पाप लगता था
जितना की हमें
मंगलवार को चिकन
खाने पे लगता
है. वो अच्छा
लड़का नहीं था,
इसलिए उसे दस-पंद्रह लोग बंदूकें
लेकर ढूंढ रहे
थे.
'मेरे बाप ने
रमेश को मार
डाला.' उसने रोते
हुए मुझे बताया.
मुझे लगा उसके
पढ़े-लिखे इंजिनियर
बाप में अक्ल
नहीं है.(बाद
में खुद इंजीनियरिंग
की तो पता
चला की इंजीनियर्स
में अक्ल नहीं
होती, और पढने-लिखने से अक्ल
नहीं आती! ) 'अब वे
दीदी को भी
मार डालेंगे.' मैंने
उसे अपने से
चिपका लिया. 'हम
दीदी को बचा
लेंगे.' मैंने धीरे से
कहा. उसने मुझे
आश्चर्य से देखा,
मैंने उसका चुम्बन
लिया, फिर प्लान
बताया, उसने खुश
होकर मुझे चूमा
और हम घर
वापस आ गये.
उस रात मैंने
माँ से झूठ
बोला की होमवर्क
करने सुमित के
घर जाना है.
हमने दीदी को
बचा लिया. कैसे
बचाया ये बात
बाद की बात
है.
दीदी को बचाने
के बाद थोडा
मैं बड़ा हो
गया, थोड़ी वो
बड़ी हो गई.
फिर वो कहीं
और पढने लगी
और मैं कहीं
और पढने लगा.
मैं उसकी याद
में कविता लिखता
और वो मेरी
याद में गाने
गाती.( बाद में
मेरी कविताये लोगों
को अच्छी लगने
लगीं और और
उसके गाने. मैं
निठल्ला कवि बन
गया और वो
अच्छी गायिका.) हम
एक ही चाँद
के नीचे बैठे
घंटों एक-दूसरे
को ताकते रहते.
फिर 'भारत-उदय'
हुआ और हमारे
हाथों में मोबाइल
आ गया. फिर
मैं उसके और
करीब आ गया
और वो मेरे
और करीब आ
गयी.
वो घर गयी,
मैं घर गया.
उसने अपने बाप
से मेरे बारे
में कहा. बाप
ने जोर से
थप्पड़ मारा और भद्दी-सी गाली दी. वैसी ही गाली जो आप आजकल के लीक से हटकर फिल्म बनाने वाले निर्देशकों की फिल्मों में हर दूसरे लफ्ज़ के रूप में सुनते हैं. लेकिन हम फ़िलहाल उसे 'हरामजादी' मान लेते हैं क्यूंकि मैं फिल्म नहीं साहित्य लिख रहा हूँ और साहित्य समाज का दर्पण होता है. तो दर्पण को हम साफ़ ही रखते हैं और इससे भद्दी गाली में यहाँ नहीं लिखता हूँ. यूँ कहें तो हम समाज को अपनी बदसूरती खुद देखने का मौका दे देते हैं.
उसे उसी कमरे में बंद कर दिया गया, जहां उसकी दीदी को किया गया था. मैं बिना खाए माँ की गोद में ठूंठ बना लेटा रहा. कहानी का अंत भी यही होता, उसका उस अँधेरे कमरे में मर जाना और मेरा मेरी माँ की गोद में. लेकिन हुआ ये कि एक लड़की ने आकर उसके बाप की हत्या कर दी. अगले दिन के अख़बारों में बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था- 'बाप की हत्या', और हमने अगले दिन ही शादी कर ली. किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई, क्यूंकि उसके घर में और कोई था नहीं और मेरे माँ-बाप तो मुझसे प्यार करते थे.
उसे उसी कमरे में बंद कर दिया गया, जहां उसकी दीदी को किया गया था. मैं बिना खाए माँ की गोद में ठूंठ बना लेटा रहा. कहानी का अंत भी यही होता, उसका उस अँधेरे कमरे में मर जाना और मेरा मेरी माँ की गोद में. लेकिन हुआ ये कि एक लड़की ने आकर उसके बाप की हत्या कर दी. अगले दिन के अख़बारों में बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था- 'बाप की हत्या', और हमने अगले दिन ही शादी कर ली. किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई, क्यूंकि उसके घर में और कोई था नहीं और मेरे माँ-बाप तो मुझसे प्यार करते थे.
हाँ, उसके बाप
की हत्या दीदी
ने की थी.
दीदी को बचाने
वाली रात मैं
अपने डॉक्टर बाप
की नींद की
पॉइंट फाइव ग्राम
की अल्प्रोक्स गोलियों
के तीन पत्ते
उठा लाया था.
उसने उन्हें बड़ी
मेहनत से अपने
घर के खाने
की दाल में
मिलाया था. सब
सो गये और
हमने तीन दिन
की भूखी दीदी
को छुड़ा लिया.
लेकिन उसकी माँ
मर गयी. हुआ
ये की दाल
ज्यादा बन गई,
और हमेशा कम
खाना खाने वाली
उसकी दुबली माँ
ने वो दाल
पी ली. वैसे
भी औरत की
भूख कितनी होती
है, बस जितना
सबके खाने के
बाद घर में
बच जाये! ये बात मुझे अपनी माँ से पता चली थी, वो अगर ज्यादा बच जाए तो तो दो रोटियाँ ज्यादा खा लेती थी नहीं तो एक-दो रोटियाँ कम खाती थी, और इसी कम-ज्यादा खाने के चक्कर में वो पहले दुबली हुई फिर मोटी हो गयी थी. मुझे लगता है उसकी माँ भी वैसा ही करती होगी. लेकिन वो दुबली थी, मुझे लगता है, उसकी माँ हमेशा एक-दो रोटियाँ कम ही खाती थी. खैर,
ज्यादा दाल मतलब
ज्यादा नींद की
गोलियां, ज्यादा नींद की
गोलियां मतलब मौत.....और उसकी
माँ चल बसी.
लेकिन उसे दुःख
नहीं हुआ, न
मुझे दुःख हुआ.
क्यूंकि रमेश की
हत्या में वो
भी बराबर की
भागीदार थी.
अब दस साल
बाद जबकि भारत-निर्माण हो रहा है, वो यानि
कि मेरी बीवी
करीना अपनी कार
से दीदी यानि
कि करिश्मा को
लेने जेल गयी
है और मैं
यानि की 'मैं'
आपको अपनी पहली
कहानी सुना रहा
हूँ. इस कहानी
का शीर्षक 'कभी
ख़ुशी कभी गम'
नुमा सुखद अंत
और लकी K - फैक्टर
को देखते हुए 'खैर,
दिल मिल ही
गये' भी हो
सकता था (जैसा की ब्लॉग के पते में किया है.), लेकिन मैंने चुपके
से ऊपर 'बाप
की हत्या' लिख
दिया है!
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